बर्शकाल-ए-गिर्या-ए-आशिक़ है देखा चाहिए खिल गई मानिंद-ए-गुल सौ जा से दीवार-ए-चमन उल्फ़त-ए-गुल से ग़लत है दावा-ए-वारस्तगी सर्व है बा-वस्फ़-ए-आज़ादी गिरफ़्तार-ए-चमन
0 comments :
Post a Comment