दोस्ती पर कुछ तरस खाया करो । बेज़रूरत भी कभी आया करो । सोचो मैंने क्यों कही थी कोई बात, हू-ब-हू मुझको न दोहराया करो । रोशनी के तुम अलमबरदार हो, रोशनी में भी कभी आया करो । बर्फ़ होता जा रहा हूँ मैं ’नदीम’ मेरे ऊपर धूप का साया करो ।
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