बड़ा अजूबा रंग-मंच है,
बदला-बदला सबका वेश
कोई धरे मुखौटा चोखा
देता हर दर्शक को धोखा
कोई लंबे बाल संवारे
कोई है मुंडवाए केश
कोई बोले रटी-रटाई
कोई कहे ज़िगर की खाई
कोई दुमुही जैसा बोले
कोई बोले केवल श्लेष
कोई डुबो-डुबो कर खाए
कोई झूठी आस बंधाए
कोई भर घड़ियाली आँसू
हमदर्दी से आए पेश
कोई दौलत पर इतराए
कोई सत्ता पा बौराए
कोई सब्ज़-बाग दिखलाता
बेंचे लेता सारा देश
Saturday, December 27, 2014
अजूबा रंग-मंच / उमेश चौहान
Subscribe to:
Post Comments
(
Atom
)
0 comments :
Post a Comment