हक मुझे बातिल आशना न करे
मैं बुतों से फिरूँ ख़ुदा न करे
दोस्ती बद-बला है उस में ख़ुदा
किसी दुश्मन को मुब्तला न करे
है वो मक़तूल काफ़िर-ए-नेमत
अपने क़ातिल को जो दुआ न करे
रू मेरे को ख़ुदा क़यामत तक
पुश्त-ए-पा से तेरी जुदा न करे
नासेहो ये भी कुछ नसीहत है
कि ‘यक़ीं’ यार से वफ़ा न करे
Monday, December 29, 2014
हक मुझे बातिल आशना न करे / इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन
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