उस बीहड़ काली एक शिला पर बैठा दत्तचित्त-
- वह काक चोंच से लिखता ही जाता है अविश्राम
- पल-छिन, दिन-युग, भय-त्रास, व्याधि-ज्वर,
- जरा-मृत्यु, बनने-मिटने के कल्प, मिलन, बिछुड़न,
- गति-निगति-विलय के अन्तहीन चक्रान्त।
- वह काक चोंच से लिखता ही जाता है अविश्राम
इस धवल शिला पर यह आलोक-स्नात,
- उजला ईश्वर-योगी, अक्लान्त शान्त,
- अपनी स्थिर, धीर, मन्द स्मिति से वह सारी लिखत
- मिटाता जाता है। योगी!
- वह स्मिति मेरे भीतर लिख दे:
- मिट जाए सभी जो मिटता है।
- वह अलम् होगी।
- उजला ईश्वर-योगी, अक्लान्त शान्त,
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