Pages

Monday, December 29, 2014

शब्द के अर्थ ने द्वार खोला नहीं / केदारनाथ मिश्र ‘प्रभात’

गीत लिखकर थका, गीत गाकर थका
शब्द के अर्थ ने द्वार खोला नहीं

छंद तारे बने, छंद नभ भी बना
छंद बनती हवाएं रही रातभर
छंद बनकर उमड़ती चली निर्झरी
रह गया देखता मुग्ध पर्वत-शिखर

तीर से वीचियों का मिलन एक क्षण
छंद वह भी बना, प्यार बोला नहीं

वृक्ष की पत्तियों पर शिखा रूप् की
मुस्कुराती रही, रात ढलती गई
पाटियां पारकर आयु की हर किरन
रक्त बहता रहा-राह चलती गई।

केदारनाथ मिश्र 'प्रभात'

0 comments :

Post a Comment