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Friday, December 26, 2014

ओ देस से आने वाले बता! / 'अख्तर' शीरानी

ओ देस से आने वाले बता!
क्‍या गांव में अब भी वैसी ही मस्ती भरी रातें आती हैं?
देहात में कमसिन माहवशें तालाब की जानिब जाती हैं?
और चाँद की सादा रोशनी में रंगीन तराने गाती हैं?

ओ देस से आने वाले बता!
क्‍या अब भी गजर-दम1चरवाहे रेवड़ को चराने जाते हैं?
और शाम के धुंदले सायों में हमराह घरों को आते हैं?
और अपनी रंगीली बांसुरियों में इश्‍क़ के नग्‍मे गाते हैं?

ओ देस से आने वाले बता!
आखिर में ये हसरत है कि बता वो ग़ारते-ईमाँ2 कैसी है?
बचपन में जो आफ़त ढाती थी वो आफ़ते-दौरां3 कैसी है?
हम दोनों थे जिसके परवाने वो शम्‍मए-शबिस्‍तां4 कैसी हैं?

ओ देस से आने वाले बता!
क्‍या अब भी शहाबी आ़रिज़5 पर गेसू-ए-सियह6 बल खाते हैं?
या बहरे-शफ़क़ की7 मौजों पर8 दो नाग पड़े लहराते हैं?
और जिनकी झलक से सावन की रातों के से सपने आते हैं?

ओ देस से आने वाले बता!
अब नामे-खुदा, होगी वो जवाँ मैके में है या ससुराल गई?
दोशीज़ा है या आफ़त में उसे कमबख़्त जवानी डाल गई?
घर पर ही रही या घर से गई, ख़ुशहाल रही ख़ुशहाल गई?
ओ देस से आने वाले बता!

'अख्तर' शीरानी

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