ग़ज़ल मेरी में कोई छल नहीं है,
समस्याएं बहुत हैं हल नहीं है।
तुम्हारी फाइलें नोटों से तर हैं,
पियासे गांव में एक नल नहीं हैं।
तरक्की के नए आयाम देखो,
बुजुर्गो के लिये एक पल नहीं है।
यकीनन आज की सूरत है मुश्किल,
ये मिलकर तय करें ये कल नहीं है।
बहुत रंगीन दिखती है जो रिश्वत,
ये जेट्रोफा है कोई फल नहीं है।
तुम अपनी लिस्ट को फांसी चढा दो,
अगर उस लिस्ट में अफजल नहीं है।
समीक्षक है तो होगा अपने घर का,
मुझे खारिज करे ये बल नहीं है।
Sunday, December 28, 2014
ग़ज़ल मेरी में कोई छल नही है / अभिनव अरुण
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