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Wednesday, December 31, 2014

हुस्न जब इश्क़ से मन्सूब नहीं होता है / अनवर जलालपुरी

हुस्न जब इश्क़ से मन्सूब नहीं होता है
कोई तालिब कोई मतलूब नहीं होता है

अब तो पहली सी वह तहज़ीब की क़दरें न रहीं
अब किसी से कोई मरऊब नहीं होता है

अब गरज़ चारों तरफ पाँव पसारे है खड़ी
अब किसी का कोई महबूब नहीं होता है

कितने ईसा हैं मगर अम्न-व-मुहब्बत के लिये
अब कहीं भी कोई मस्लूब नहीं होता है

पहले खा लेता है वह दिल से लड़ाई में शिकस्त
वरना यूँ ही कोई मजज़ूब नहीं होता है

अनवर जलालपुरी

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