हुई है शाम तो आँखों में बस गया फिर तू
कहाँ गया है मेरे शहर के मुसाफ़िर तू
बहुत उदास है इक शख़्स तेरे जाने से
जो हो सके तो चला आ उसी की ख़ातिर तू
मेरी मिसाल कि इक नख़्ल-ए-ख़ुश्क-ए-सहरा हूँ
तेरा ख़याल कि शाख़-ए-चमन का ताइर तू
मैं जानता हूँ के दुनिया तुझे बदल देगी
मैं मानता हूँ के ऐसा नहीं बज़ाहिर तू
हँसी ख़ुशी से बिछड़ जा अगर बिछड़ना है
ये हर मक़ाम पे क्या सोचता है आख़िर तू
"फ़राज़" तूने उसे मुश्किलों में डाल दिया
ज़माना साहिब-ए-ज़र और सिर्फ़ शायर तू
Monday, December 29, 2014
हुई है शाम तो आँखों में बस गया फिर तू / फ़राज़
Subscribe to:
Post Comments
(
Atom
)
nice
ReplyDelete