Pages

Monday, December 29, 2014

किसी से दिल की हिक़ायत कभी कहा नहीं की / फ़राज़

किसी से दिल की हिक़ायत कभी कहा नहीं की,
वगर्ना ज़िन्दगी हमने भी क्या से क्या नहीं की,

हर एक से कौन मोहब्बत निभा सकता है,
सो हमने दोस्ती-यारी तो की वफ़ा नहीं की,

शिकस्तगी में भी पिंदारे-दिल सलामत है,
कि उसके दर पे तो पहुंचे मगर सदा नहीं की,

शिक़ायत उसकी नहीं है के उसने ज़ुल्म किया,
गिला तो ये है के ज़ालिम ने इंतेहा नहीं की,

वो नादेहंद अगर था तो फिर तक़ाज़ा क्या,
के दिल तो ले गया क़ीमत मगर अदा नहीं की,

अजीब आग है चाहत की आग भी के ‘फ़राज़’,
कहीं जला नहीं की और कहीं बुझा नहीं की,

अहमद फ़राज़

0 comments :

Post a Comment