Pages

Sunday, December 28, 2014

दर्द-ए-दिल, दर्द-ए-जिगर दिल में जगाया आपने / आनंद बख़्शी

 
दर्द-ए-दिल, दर्द-ए-जिगर दिल में जगाया आपने
पहले तो मैं, शायर था, आशिक़ बनाया आपने

आपकी मद्होश नज़रें कर रहीं हैं शायरी
ये ग़ज़ल मेरी नहीं ये ग़ज़ल हैं आपकी
मैं ने तो बस वो लिखा जो कुछ लिखाया आपने
दर्द-ए-दिल ...

कब कहाँ सब खो गयी जितनी भी थी परछाइयाँ
उठ गयी यारो की महफ़िल हो गयी तन्हाइयाँ
क्या किया शायद कोई परदा गिराया आपने
दर्द-ए-दिल ...

और थोड़ी देर में बस, हम जुदा हो जायेंगे
आपको ढूँढूँगा कैसे, रास्ते खो जायेंगे
नाम तक तो भी नहीं अपना बताया आपने
दर्द-ए-दिल ...

आनंद बख़्शी

0 comments :

Post a Comment