- दिन हथकड़ियों के
- बेड़ी में पाँव फँसे।।
- दिन हथकड़ियों के
सुबह-सुबह भी जैसे
काली रात खड़ी,
इस स्वाधीन
समय में
मुर्दा जात बड़ी।
- पानी के बाहर भी
- कोई जाल कसे।।
- पानी के बाहर भी
छोटों के दिन
बड़े-बड़ों के पेटों के,
भीतर धँसी
सलाखों
बाहर आखेटों के।
- चीन्ह-चीन्ह कर मारा
- उनके घाव हँसे।।
- चीन्ह-चीन्ह कर मारा
जिनके शासित हम
भूमंडल के पाखी,
आसमान में उनके
लटकी
अपनों की बैसाखी।
- ताक़त की सत्ता में
- आदम कहाँ बसे।।
- ताक़त की सत्ता में
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