ग़ैर को ही पर सुनाए तो सही
शेर मेरे गुनगुनाए तो सही
हाँ, नहीं हमसे, रकीबों से सही
आपने रिश्ते निभाए तो सही
किन ख़ताओं की मिली हमको सज़ा
ये कोई हमको बताए तो सही
आँख बेशक हो गई नम फिर भी हम
ज़ख़्म खाकर मुस्कुराए तो सही
याद आए हर घड़ी अल्लाह हमें
इस क़दर कोई सताए तो सही
ज़िन्दगी के तो नहीं पर मौत के
हम किसी के काम आए तो सही
Saturday, December 27, 2014
गैर को ही पर सुनाये तो सही / कविता किरण
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