थोड़ी सी इस तरफ़ भी नज़र होनी चाहिए
ये ज़िंदगी तो मुझ से बसर होनी चाहिए
आए है लोग रात की दहलीज़ फाँद कर
उन के लिए नवेद-ए-सहर होना चाहिए
इस दर्जा पारसाई से घुटने लगा है दम
मैं हूँ बशर ख़ता-ए-बशर होनी चाहिए
वो जानता नहीं तो बताना फ़ुज़़ूल है
उस को मिरे ग़मों की ख़बर होनी चाहिए
Friday, December 26, 2014
थोड़ी सी इस तरफ़ भी नज़र होनी चाहिए / अताउल हक़ क़ासमी
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