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Saturday, December 20, 2014

ये आलम शौक़ का देखा न जाये / फ़राज़

ये आलम[1]शौक़ [2]का देखा न जाये
वो बुत[3] है या ख़ुदा देखा न जाये

ये किन नज़रों से तुम ने आज देखा
के तेरा देखना देखा न जाये

हमेशा के लिये मुझ से बिछड़ जा
ये मंज़र[4] बारहा[5] देखा न जाये

ग़लत है जो सुना पर आज़मा[6] कर
तुझे ऐ बेवफ़ा[7] देखा न जाये

ये महरूमी[8] नहीं पास-ए-वफ़ा है
कोई तेरे सिवा देखा न जाये

यही तो आश्ना[9] बनते हैं आख़िर
कोई नाआश्ना [10]देखा न जाये

"फ़राज़" अपने सिवा है कौन तेरा
तुझे तुझ से जुदा देखा न जाये

शब्दार्थ:
  1. दशा
  2. अभिलाषा
  3. मूर्ति
  4. दृश्य
  5. बार-बार
  6. परीक्षा लेकर
  7. जो वफ़ादार न हो
  8. असफलता
  9. परिचित्
  10. अपरिचित
अहमद फ़राज़

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