ये आलम[1]शौक़ [2]का देखा न जाये
वो बुत[3] है या ख़ुदा देखा न जाये
ये किन नज़रों से तुम ने आज देखा
के तेरा देखना देखा न जाये
हमेशा के लिये मुझ से बिछड़ जा
ये मंज़र[4] बारहा[5] देखा न जाये
ग़लत है जो सुना पर आज़मा[6] कर
तुझे ऐ बेवफ़ा[7] देखा न जाये
ये महरूमी[8] नहीं पास-ए-वफ़ा है
कोई तेरे सिवा देखा न जाये
यही तो आश्ना[9] बनते हैं आख़िर
कोई नाआश्ना [10]देखा न जाये
"फ़राज़" अपने सिवा है कौन तेरा
तुझे तुझ से जुदा देखा न जाये
Saturday, December 20, 2014
ये आलम शौक़ का देखा न जाये / फ़राज़
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