ललित लवँग लतिका सी है लचीली बाल ,
ऎसी जानि नेकु सक चित्त मैँ न दीजिये ।
भौँरन के भार सोँ नमत मँजरी न नेक ,
याही को उदाहरन मन गुनि लीजिये ।
जकरि भुजान सोँ इकन्त परयँक पर ,
लपटि अनँद सोँ अमँद रस पीजिये ।
मानि मेरी सीख तजौ मन को सँदेह ऎसो ,
नेनू सी नरम नारि कैसे रति कीजिये ।
रीतिकाल के किन्हीं अज्ञात कवि का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।
Tuesday, December 9, 2014
ललित लवँग लतिका सी है लचीली बाल / अज्ञात कवि (रीतिकाल)
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