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Tuesday, December 9, 2014

दृश्‍य / अरुणा राय

तुम्‍हारी चाहना के तट पर
छलक रहा
समय है यह

इसमें बहो
और इसे बहने दो
अपने भीतर
गहने दो
अपने अवगुंठनों को
यह उघार डालेगा तुम्‍हें
पोंछ डालेगा
निष्क्रियता की केंचुल तुम्‍हारी

इस डबडबाए समय में
डूबकर
निकलोगे
तो वही नहीं रहोगे
जो थे तुम
यह रच डलेगा स्‍वप्‍नों को तुम्‍हारे
सचों को नया आकार देगा

इस समय में डूबो ओर अदृश्‍य हो जाओ
इस समय में डूबो और दृश्‍य बन जाओ

अरुणा राय

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