छोड़ो अब उस चराग़ का चर्चा बहुत हुआ
अपना तो सब के हाथों ख़सारा बहुत हुआ
क्या बे-सबब किसी से कहीं ऊबते हैं लोग
बावर करो के ज़िक्र तुम्हारा बहुत हुआ
बैठे रहे के तेज़ बहुत थी हवा-ए-शौक़
पस्त-ए-हवस का गरचे इरादा बहुत हुआ
आख़िर को उठ गए थे जो इक बात कह के हम
सुनते हैं फिर उसी का इआदा बहुत हुआ
मिलने दिया न उस से हमें जिस ख़याल ने
सोचा तो उस ख़याल से सदमा बहुत हुआ
अच्छा तो अब सफ़र हो किसी और सम्त में
ये रोज़ ओ शब का जागना सोना बहुत हुआ
Thursday, December 25, 2014
छोड़ो अब उस चराग़ का चर्चा बहुत हुआ / अहमद महफूज़
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