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Wednesday, December 24, 2014

अनमने दिन / अनिल जनविजय

दिन बीते
रीते-रीते
इन सूनी राहों पे

मिला न कोई राही
बना न कोई साथी
वन सूखे चाहों के

याद न कोई आता
न मन को कोई भाता
घेरे खाली हैं बाहों के

कलप रहा है तन
जैसे भू-अगन
दिन आए फिर कराहों के


(रचनाकाल : 2005)

अनिल जनविजय

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