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Wednesday, December 3, 2014

जाग रहा है फिर भी पड़ा है / कांतिमोहन 'सोज़'

जाग रहा है फिर भी पड़ा है I
बेशक उसका बाप बड़ा है II

अब तो ग़रीबी मिटके रहेगी
ज़रदारों का अहद कड़ा है I

किसको बताएं कितना बताएं
यार जनम भर का दुखड़ा है I

कितनी कुटिल चाल है उसकी
पर कैसा भोला मुखड़ा है I

एकनुक़ाती उसकी सियासत
मंदिर-मस्जिद का झगड़ा है I

दाना ने सीखी ग़मख़ोरी
मूरख अकड़ा ही अकड़ा है I

किससे पूछे कौन बताए
सोज़ लहू में क्यूं लिथड़ा है II

कांतिमोहन 'सोज़'

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