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Tuesday, December 2, 2014

तू अगर दिल-नवाज़ हो जाए / अलीम 'अख्तर'

तू अगर दिल-नवाज़ हो जाए
सोज़ हम-रंग-ए-साज़ हो जाए

दिल जो आगाह-ए-राज़ हो जाए
हर हकीक़त मजाज़ हो जाए

लज़्ज़त-ए-ग़म का ये तक़ाज़ा है
मुद्दत-ए-ग़म दराज़ हो जाए

नग़मा-ए-इश्क़ छेड़ता हूँ मैं
ज़िंदगी नै-नवाज़ हो जाए

उस की बिगड़ी बने न क्यूँ ऐ इश्क़
जिस का तू कार-साज़ हो जाए

हुस्न मग़रूर है मगर तौबा
इश्क़ अगर बे-नियाज़ हो जाए

दर्द का फिर मज़ा है जब 'अख़्तर'
दर्द ख़ुद चारा-साज़ हो जाए

अलीम 'अख्तर'

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