आँधरे को प्रतिबिम्ब कहा बहिरे को कहा सुर राग की तानै ।
आदी को स्वाद कहा कपि को पर नीच कहा उपकारहि मानै ।
भेड़ कहा लै करै बुकवा हरवाह जवाहिर का पहिचानै ।
जानै कहा हिंञरा रति की गति आखर की गति काखर जानै ।
रीतिकाल के किन्हीं अज्ञात कवि का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।
Wednesday, December 24, 2014
आँधरे को प्रतिबिम्ब कहा बहिरे को कहा सुर राग की तान / अज्ञात कवि (रीतिकाल)
Subscribe to:
Post Comments
(
Atom
)
0 comments :
Post a Comment