कल तो तेरे ख़्वाबों ने मुझ पर यूँ अर्ज़ानी की
सारी हसरत निकल गई मेरी तन-आसानी की
पड़ा हुआ हूँ शाम से मैं उसी बाग़-ए-ताज़ा में
मुझ में शाख निकल आई है रात की रानी की
इस चौपाल के पास इक बूढ़ा बरगद होता था
एक अलामत गुम है यहाँ से मेरी कहानी की
तुम ने कुछ पढ़ कर फूँका मिट्टी के प्याले में
या मिट्टी में गुँधी हुई तासीर है पानी की
क्या बतलाऊँ तुम को तुम तक अर्ज़ गुज़ारने में
दिल ने अपने आप से कितनी खींचा-तानी की
Sunday, December 21, 2014
कल तो तेरे ख़्वाबों ने मुझ पर यूँ अर्ज़ानी की / अंजुम सलीमी
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