हुस्ने-सीरत पर नज़र कर, हुस्ने-सूरत को न देख। आदमी है नाम का गर ख़ू नहीं इन्सान की॥ ध्यान आता है कि टूटा था, ग़लमफ़हमी में अहद। यादगार इक है तो धुंधली सी मगर किस शान की॥
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