Pages

Tuesday, December 16, 2014

हुस्ने-सीरत पर नज़र कर, हुस्ने-सूरत को न देख / आरज़ू लखनवी

हुस्ने-सीरत पर नज़र कर, हुस्ने-सूरत को न देख।
आदमी है नाम का गर ख़ू नहीं इन्सान की॥

ध्यान आता है कि टूटा था, ग़लमफ़हमी में अहद।
यादगार इक है तो धुंधली सी मगर किस शान की॥

आरज़ू लखनवी

0 comments :

Post a Comment