भूषण स्वेत महा छवि सुंदर सानि सुवास रची सब सोने ।
गोरे से अँग गरूर भरी कवि खेम कहैँ जो गई तंह गौने ।
चँदमुखी कटि खीन खरी दृग मीनहु ते अति चँचल पौने ।
ऎसी जो आयकै अँक लगै तो कलँक लगौ अरु होऊ सो होने ।
खेम का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।
Tuesday, December 2, 2014
भूषण स्वेत महा छवि सुंदर सानि सुवास रची सब सोने / खेम
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