जब से सँभाला होश मेरी काव्य चेतना ने
मेरी कल्पना में आती-जाती रही चाँदनी ।
आधी-आधी रात मेरी आँख से चुरा के नींद
खेत खलिहान में बुलाती रही चाँदनी ।
सुख में तो सभी मीत होते किन्तु दुख में भी
मेरे साथ साथ गीत गाती रही चाँदनी ।
जाने किस बात पे मैं चाँदनी को भाता रहा
और बिना बात मुझे भाती रही चाँदनी ।
Sunday, December 14, 2014
चाँदनी / उदयप्रताप सिंह
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