छलक आया प्यार मेरा
अब दृगों के कोर तक
आ सको यदि
आ भी जाओ, कौन जाने
सांस की लड़ियां बिखर जाएं
सुहानी भोर तक
भाल पर तेरे, मेरे
चुम्बन का कुमकुम तो लगे
एक वह अभिसार बेला
लाख पूनम को ठगे
कान में तुम कुछ मेरे
ऐसा कहो
ठहर जाए इस हृदय की
धड़कनों का शोर तक
डूबना यदि नियति मेरी
तो शिकायत भी नहीं
और की बाहें गहूं
इतनी जरूरत भी नहीं
पार उतरूंगा तुम्ही से
आ मिलो,
मुझे राह तकनी है तुम्हारी
आखिरी हिलोर तक
Saturday, December 20, 2014
आखिरी हिलोर तक / अभिज्ञात
Subscribe to:
Post Comments
(
Atom
)
0 comments :
Post a Comment