वफ़ा न झूम के जब तेरे गीत गाए हैं
क़दम उफ़ुक पे अँधेरों के लड़खड़ाए हैं
तेरी क़रीब पहुँच कर भी कम नहीं होते
ग़म-ए-हयात ने जो फ़ासले बढ़ाए हैं
बहुत तवील सही राह-ए-जुस्तुजू लेकिन
बहुत हसीन तेरे गेसुओं के साए हैं
तेरी निगाह मुदावा न बन सकी जिन का
तेरी तलाश में ऐसे भी ज़ख्म खाए हैं
पड़ा है अक्स जो रूख़्सार-ए-शोला-ए-मय का
तो आईने तेरी यादों के जगमगाए हैं
मुसाफ़िरान-ए-शब-ए-ग़म की राह में ‘जामी’
नए चराग़ मेर फ़िक्र ने जलाए ह
Wednesday, December 17, 2014
वफ़ा न झूम के जब तेरे गीत गाए हैं / ख़ुर्शीद अहमद 'जामी'
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