ग़ज़ल सरा हूँ तेरी खातिर कुछ तो लगाव हो
हमसे जुदा हो कैसी बीती सारा हाल सुनाव हो
ये अहले खिरद हैं दीवाने पे मश्क-ए-सितम है
तुम बज़्म-ए-वफा के एक दिया तुम उनको राह दिखाव है
चुपके-चुपके होले-होले कौन दिये ये दस्तक हो
खोलो दिल के बन्द दरीचे उसमें उन्हें समाव हो
करते-करते बेदर्दी तुम दर्द के मारे बन बैठे
निकले आँसू मेरे लिए क्या बात हुई बतलाव हो
मस्त-मस्त आँखों को देखूँ तब मैं कोई शेर कहूँ।
आरिफ अपनी ग़ज़ल सुनाये तुम भी गीत सुनाव हो
Friday, December 19, 2014
ग़ज़ल सरा हूँ तेरी खातिर कुछ तो लगाव हो / अबू आरिफ़
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