कहा करौं वह मूरति जिय ते न टरई।
सुंदर नंद कुँवर के बिछुरे, निस दिन नींद न परई॥
बहु विधि मिलन प्रान प्यारे की, एक निमिष न बिसरई।
वे गुन समुझि समुझि चित नैननि नीर निरंतर ढरई॥
कछु न सुहाय तलाबेली मनु, बिरह अनल तन जरई।
'कुंभनदास लाल गिरधन बिनु, समाधान को करई।
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