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Wednesday, December 17, 2014

उस की हसरत है जिसे दिल से मिटा भी न सकूँ / अमीर मीनाई

 
उस की हसरत[1] है जिसे दिल से मिटा भी न सकूँ
ढूँढने उस को चला हूँ जिसे पा भी न सकूँ


मेहरबाँ होके बुला लो मुझे चाहो जिस वक़्त
मैं गया वक़्त नहीं हूँ के फिर आ भी न सकूँ

डाल कर ख़ाक मेरे ख़ून पे क़ातिल ने कहा
कुछ ये मेहंदी नहीं मेरी के मिटा भी न सकूँ

ज़ब्त[2] कमबख़्त ने और आ के गला घोंटा है
के उसे हाल सुनाऊँ तो सुना भी न सकूँ

ज़हर मिलता ही नहीं मुझको सितमगर वरना
क्या कसम है तेरे मिलने की के खा भी न सकूँ

उस के पहलू[3]में जो ले जा के सुला दूँ दिल को
नींद ऐसी उसे आए के जगा भी न सकूँ

नक्श-ऐ-पा देख तो लूँ लाख करूँगा सजदे
सर मेरा अर्श[4] नहीं है कि झुका भी न सकूँ

बेवफ़ा लिखते हैं वो अपनी कलम से मुझ को
ये वो किस्मत का लिखा है जो मिटा भी न सकूँ

इस तरह सोये हैं सर रख के मेरे जानों पर
अपनी सोई हुई किस्मत को जगा भी न सकूँ

शब्दार्थ:
  1. इच्छा-desire
  2. सहनशीलता-Forbearance
  3. गोद-Lap
  4. आसमान

अमीर मीनाई

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