वह हल चलाता है
और मजूरी पाता है
वह जो मजूरी पाता है
उसी से घर चलाता है
वह कैसे चलाता है घर
मैं नहीं जानता
मगर मैं देख रहा हूँ
कैसे चलाता है हल
देख रहा हूँ
कितनी कारीगरी है
उसके हल चलाने में
ज़मीन के कैनवास पर
ज्यामितिक एक सुन्दर-सी आकृति बनाने में
जिसकी एक-एक रेख कितनी सधी और
सीधी है
जो देखने के आनंद के अलावा अन्न भी
देती है
मगर दोस्तो!
उसकी यह कला
महज दस-बीस रूपयों की मजूरी
जो वह पाता है
जबकि दूसरों की कमाऊ खेती है
Saturday, December 20, 2014
एक हलवाहे का हल चलाना देखकर / केशव शरण
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