- घबराहट घुटन बहुत है
- प्रीत पावना सावन दो
- दो पूरा अपनापन दो
- घबराहट घुटन बहुत है
गुणा भाग की नगरी में
नहीं शेष कुछ गठरी में
सपने मुस्कान रहित से
तपते हैं दोपहरी में
- सुलगी झुलसी रातों को
- अब नींदों का चंदन दो
- सुलगी झुलसी रातों को
तुम रूठे तो जग रूठा
मौन हुआ गात अनूठा
छूट गया महका आँचल
दृश्य-दृश्य दर्पण झूठा
- सुबक-सुबक चलतीं साँसे
- औषध से आश्वासन दो
- सुबक-सुबक चलतीं साँसे
पीड़ा के संयोजन में
प्रेम यज्ञ आयोजन में
संवेदन भटकें राहें
शृंगारों के उपवन में
- जहाँ मुस्कुराये थे हम
- वो पहला-पहलापन दो
- जहाँ मुस्कुराये थे हम
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