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Sunday, December 21, 2014

लोग पूछेंगे / इब्ने इंशा

लोग पूछेंगे क्यों उदास हो तुम
और जो दिल में आए सो कहियो
"यूँ ही माहौल की गिरानी है
दिन ख़िज़ाँ के ज़रा उदास-से हैं
कितने बोझिल हैं शाम के साए"
उनकी बाबत ख़मोश ही रहियो
नाम उनका न दरमियाँ आए
नाम उनका न दरमियाँ आए
उनकी बाबत ख़मोश ही रहियो
"कितने बोझिल हैं शाम के साए
दिन ख़िज़ाँ के ज़रा उदास-से हैं
यूँ ही माहौल की गिरानी है"
और जो दिल में आए सो कहियो
लोग पूछेंगे क्यों उदास हो तुम ?

(रचनाकाल : 1948)

इब्ने इंशा

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