Pages

Friday, December 19, 2014

नित चातक चाय सोँ बोल्यो करै मुरवान को सोर सुहावन है / अज्ञात कवि (रीतिकाल)

नित चातक चाय सोँ बोल्यो करै मुरवान को सोर सुहावन है ।
चमकै चपला चँहु चाव चढ़ी घनघोर घटा बरसावन है ।
पलकौ पपिहा न रहै चुप ह्वै अरु पौन चहूँ दिसि आवन है ।
मिलि प्यारी पिया लपटैँ छतियाँ सुख को सरसावन सावन है ।


रीतिकाल के किन्हीं अज्ञात कवि का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।

अज्ञात कवि (रीतिकाल)

0 comments :

Post a Comment