मानवता के आदर्शों का जो सम्मान करें
पुरुष वही जो दानवता का, मर्दन-मान करें।
धरती पर वैसे तो कितने आते हैं, जाते हैं,
बिरले ही अपने जीवन को धन्य बना पाते हैं,
नर होने का अर्थ नहीं है अपयश में खो जाना,
नर तो वह है, दुश्मन मन भी जिसका गुणगान करे।
जीवन का उद्देश्य नहीं है केवल पीना-खाना,
साँसों पर अवलंबित होकर ऐसे ही मर जाना,
धर्म-नीति का अलख जगाते चले निरंतर पथ में,
सच्चा नर है वह जो, पौरुष का अवदान करे।
त्याग, धर्म की राह खड़ी थी कौरव सेना सारी,
किंतु अकेला अर्जुन ही था, उन पुरुषों पर भारी,
दिया सत्य का साथ ईश ने अर्जुन का उस रण में,
नर होने का अर्थ, सत्य का जो संधान करें।
लंका नगरी के उन्नायक अत्याचारी नर थे,
पुरुषोत्तम थे उनके सम्मुख रीछ और वानर थे,
उखड़ गया रावण का पौरुष, आदर्शों के आगे,
ऐसा नर भी क्या जो ताक़त पर अभिमान करे।
मानवता के आदर्शों का जो सम्मान करे,
पुरुष वही जो दानवता का, मर्दन-मान करे।
Tuesday, December 23, 2014
पुरुषार्थ / अजय पाठक
Subscribe to:
Post Comments
(
Atom
)
0 comments :
Post a Comment