तुम से बेरंगी-ए-हस्ती का गिला करना था
दिल पे अंबार है ख़ूँगश्ता तमन्नाओं का
आज टूटे हुए तारों का ख़याल आया है
एक मेला है परेशान सी उम्मीदों का
चन्द पज़मुर्दा बहारों का ख़याल आया है
पाँव थक थक के रह जाते हैं मायूसी में
पुरमहन राहगुज़ारों का ख़याल आया है
साक़ी-ओ-बादा नहीं जाम-ओ-लब-ए-जू भी नहीं
तुम से कहना था कि अब आँख में आँसू भी नहीं
Wednesday, January 1, 2014
तुम से बेरंगी-ए-हस्ती का गिला करना था / अली सरदार जाफ़री
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