मैं फ़तह-ए-ज़ात मंज़र तक न पहुँचा
मिरा तेशा मिरे सर तक न पहुँचा
उसे मेमार लिक्खा बस्तियों ने
कि जो पहले ही पत्थर तक न पहुँचा
तिजारत दिल की धड़कन गिन रही है
तअल्लुक़ लुत्फ़-ए-मंज़र तक न पहुँचा
शगुफ़्ता गाल तीखे ख़त का मौसम
दोबारा नख़्ल-ए-पैकर तक न पहुँचा
बहुत छोटा सफ़र था ज़िंदगी का
मैं अपने धर के अंदर तक न पहुँचा
ये कैसा प्यास का मौसम है ‘अहमद’
समुंदर दीदा-ए-तर तक न पहुँचा
Friday, January 31, 2014
मैं फ़तह-ए-ज़ात मंज़र तक न पहुँचा / अहमद शनास
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