बुद्धू !
चाँद कहीं फलता है क्या ?
हाँ, एक आसमानी पेड़ था धरती पर
ऊपर सबसे ऊपर की शाख पर
अटका था चाँद
और शाखों-टहनियों पर छिटके थे तारे
सच ! सबकुछ झिलमिला रहा था
पूरी धरती - पूरा आसमान
कोई चिड़िया नहीं थी क्या ?
बुद्धू !
चिड़िया सब सो रही थीं
घोसलों के किवाड बंद थे
कहीं कोई आवाज़ नहीं
बहुत सन्नाटा एकदम शांत सब
चिड़िया साँस भी ले रही थीं या नहीं
कुछ मालूम नहीं ?
दूर-दूर तक फैले इस सन्नाटे में
सुनाई पडती है एक पुकार
तभी टूटकर गिर जाता है चाँद धरती पर
और गु़म होता जाता है कहीं
छिटककर तारे चले जाते हैं न जाने कहाँ ?
नगाडे की आवाज़-सी
टूट पडती है रोशनी
Thursday, January 30, 2014
स्वप्न / उत्तमराव क्षीरसागर
Subscribe to:
Post Comments
(
Atom
)
0 comments :
Post a Comment