आज तुम संयम की तज पतवार को
मेरी बाँहों के भँवर में डूब जाओ!
मेरे आँगन से तुम्हारी ड्योढ़ी तक
अनगिनत हैं प्यास के डेरे लगे
इक सुबह से लेके आधी रात तक
रोज ही इस स्वप्न के फेरे लगे
मैं तुम्हारे नाम का चिन्तन करूँ
तुम मेरे हस्ताक्षर में डूब जाओ!
लोग कहते हैं कि कोई गुम हुआ
औ, किसी ने है, किसी को पा लिया
कोई अपनी खो चुका आवाज़ तो
कोई सारे गीत उसके गा लिया
ये खबर चाहे नई हो या पुरानी
इस खबर के हर असर में डूब जाओ!
मंज़िलों से कौन-सा रिश्ता मेरा
और तुम जाकर किनारे, क्या करोगी
हो अगर जो नेह का संबल कोई
दुनिया के लाखों सहारे क्या करोगी
मैं तेरा हर एक क्षण अपना बना लूँ
और तुम मेरी उमर में डूब जाओ!
Friday, January 31, 2014
उमर में डूब जाओ / अभिज्ञात
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