अरमानों की खड़ी फ़सल काटेंगे भई काटेंगे !
चले दराँती चाहे हल हो चले दराँती चाहे हल
काटेंगे भई काटेंगे ! काटेंगे भई काटेंगे !
हमने धरती बोई है बीज पसीने का डाला
देखो जलते सूरज ने रंग किया किसका काला ?
फ़सल नहीं इज्ज़त है अपनी कैसे ले लेगा लाला
भई कैसे ले लेगा लाला ?
जो हमसे टकराएँगे धूल सरासर चाटेंगे !
काटेंगे भई काटेंगे अरमानों की खड़ी फसल !
काटेंगे भई काटेंगे चले दराँती चाहे हल !!
पण्डे पल्टन पटवारी सारे देखे-भाले हैं
बगुला-भगत कचहरी के दिल के कितने काले हैं
काले नियम अदालत काली सब मकड़ी के जाले हैं
भई सब मकड़ी के जाले हैं
सीधा अपना नारा है बोएँगे सो काटेंगे !
काटेंगे भई काटेंगे अरमानों की खड़ी फ़सल!
काटेंगे भई काटेंगे चले दराँती चाहे हल !!
रचनाकाल : 1974
Monday, January 27, 2014
फ़सल कटाई का गीत / कांतिमोहन 'सोज़'
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