बाल कटाकर शीशा देखूं
आंखों में आ पिता झांकते
बाल बढ़ा लेता हूं जब
दाढ़ी में नाना मुस्काते हैं
कमीज हो या कुर्ता पहना
पीठ से भैया जाते लगते हैं
नाक पर गुस्सा आवे
लौंग का चटख लश्कारा अम्मा का
चटनी का चटखारा दादी का
पोपले मुंह का हासा नानी का
घिस घिस कर पति पत्नी भी सिलबट्टा हो जाते हैं
वह रोती मैं हंसता हूं
मैं उसके हिस्से में सोता
वह मेरे हिस्से में जगती है
बेटी तो बरसों से तेरी चप्पल खोंस ले जाती है
बेटे की कमीज में देख मुझे
ऐ जी क्यों आज नैन मटकाती है.
Monday, January 27, 2014
कुनबा / अनूप सेठी
Subscribe to:
Post Comments
(
Atom
)
0 comments :
Post a Comment