सब चेहरों पर सन्नाटा
हर दिल में पड़ता काँटा
हर घर में है गीला आँटा
वह क्यों होता है?
जीने की जो कोशिश है
जीने में यह जो विष है
साँसों में भरी कशिश है
इसका क्या करिये?
कुछ लोग खेत बोते हैं
कुछ चट्टानें ढोते हैं
कुछ लोग सिर्फ़ होते हैं
इसका क्या मतलब?
मेरा पथराया कन्धा
जो है सदियों से अन्धा
जो खोज चुका हर धन्धा
क्यों चुप रहता है?
यह अग्निकिरीटी मस्तक
जो है मेरे कन्धों पर
यह ज़िंदा भारी पत्थर
इसका क्या होगा?
Monday, January 27, 2014
यह अग्निकिरीटी मस्तक / केदारनाथ सिंह
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