बालू से चिनी जाएगी दीवार कहाँ तक I
वीराने में खोजोगे समनज़ार कहां तक II
एक जिंस है एहसास भी दिल भी मनो-तू भी,
लिल्लाह बढ़ा आए है बाज़ार कहाँ तक I
ऐ जोशे-जुनूं तेरा भी कुछ क़र्ज़ है हम पर,
चुप रह के बनें तेरे गुनहगार कहाँ तक I
अब उनकी रिहाई पे न होगा कोई कुहराम,
ले आए हैं ज़िन्दां को गिरफ़्तार कहाँ तक I
सय्यारा पहुँच जाता है आवाज़ से पहले,
रास आएगी दुनिया को ये रफ़्तार कहाँ तक I
अब यार है कोई न कोई जान का दुश्मन,
टुक देख तो लाया है तेरा प्यार कहाँ तक I
हावी हुआ इस दर्जा उजाले पे अन्धेरा
अब सोज़ भी रहते हैं तरफ़दार कहाँ तक II
Friday, January 31, 2014
बालू से चिनी जाएगी दीवार कहाँ तक / कांतिमोहन 'सोज़'
Subscribe to:
Post Comments
(
Atom
)
0 comments :
Post a Comment