मयस्सर हमें कोई ऐसा जहाँ हो
जहाँ दाना-पानी हो इक आशियाँ हो
तरसते हुए हम कहीं मर न जाएँ
कभी ज़िन्दगी का हमें भी गुमाँ हो
गिरे आशियाने शजर कट रहे हैं
हमारे भी सर पर कोई सायबाँ हो
जहाँ पास रह कर हैं सब अजनबी-से
मिले कोई अपना कोई हमज़बाँ हो
फ़सादों से सारा चमन जल न जाए
यहाँ प्यार का कोई दरिया रवाँ हो
परिन्दे तो उड़ते हैं ‘आज़ाद’ हर सू
हमारी ही ख़ातिर हदें क्यूँ यहाँ हो
Tuesday, January 21, 2014
मयस्सर हमें कोई ऐसा जहाँ हो / अज़ीज़ आज़ाद
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