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Monday, November 3, 2014

हम रोए तो लगा ज़माना रोता है / अल्पना नारायण

हम रोए तो लगा ज़माना रोता है
रोज़ यहाँ इक नया फ़साना होता है

कहीं खनकते जाम ख़ुशी के गीत कहीं
कोई भूखे पेट बेचारा सोता है

नहीं वक़्त पर कर पाता जो निर्णय वो
बीच भँवर में फँसकर नाव डुबोता है

दामन अपना खाली देख दुखी मत हो
उतना ही मिलता है जितना बोता है

रिश्ते, नाते, प्यार, वफ़ा सब बेमानी
रिश्ता केवल मजबूरी का होता है

अल्पना नारायण

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