जानत जे हैँ सुजान तुम्हैँ तुम आपने जान गुमान गहे हो ।
दूध औ पानी जुदे करिबे को जु कोऊ कहै तो कहा तुम कैहो ।
सेत ही रँग मराल बने हौ पै चाल कहौ जु कहाँ वह पैहो ।
प्यार सोँ कोऊ कछू हू कहै बक हौ बक हौ झख मारत रैहो ।
रीतिकाल के किन्हीं अज्ञात कवि का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।
Sunday, November 30, 2014
जानत जे हैँ सुजान तुम्हैँ तुम आपने जान गुमान गहे हो / अज्ञात कवि (रीतिकाल)
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