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Wednesday, November 26, 2014

जीभ की गाथा / अरुण कमल

दाँतों ने जीभ से कहा-- ढीठ, सम्भल कर रह
हम बत्तीस हैं और तू अकेली

चबा जाएंगे


जीभ उसी तरह रहती थी इस लोकतांत्रिक मुँह में
जैसे बाबा आदम के ज़माने से
बत्तीस दाँतों के बीच बेचारी इकली जीभ

बोली, मालिक आप सब झड़ जाओगे एक दिन
फिर भी मैं रहूंगी
जब तक यह चोला है।

अरुण कमल

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