इतना भी गुनहगार न मुझको बनाइये
सज़दे के वक़्त यूँ न मुझे याद आइये
नज़रें नहीं मिला रहा हूँ अब किसी से मैं
ताक़ीद कर गए हैं वो, कि, ग़म छुपाइये
मतलब निकालते हैं लोग जाने क्या से क्या
आँखें छलक रहीं हो अगर मुस्कराइये
वो शख्स मुहब्बत के राज़ साथ ले गया
अब लौटकर न आयेगा, गंगा नहाइये
सदियों का थका हारा था दामन में रूह के
'आनंद' सो गया है, उसे मत जगाइये
Friday, November 28, 2014
इतना भी गुनहगार न मुझको बनाइये / आनंद कुमार द्विवेदी
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